Wednesday, July 31, 2024

PREMCHAND BIOGRAPHY

 धनपत राय श्रीवास्तव ( ३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

१९०६ से १०३६ के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में १९१८ से १९३६ तक के कालखण्ड को 'प्रेमचंद युग' या 'प्रेमचन्द युग' कहा जाता है।

जीवन परिचय

प्रेमचंद स्मृति द्वार, लमही, वाराणसी

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। प्रेमचंद जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया। परेमचंद शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखते हैं की “पिताजी ने जीवन के अंतिम वर्षों में एक ठोकर खाई और स्वंय तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया और मेरी शादी बिना सोचे समझे करा दिया|

इस बात की पुष्टि रामविलास शर्मा के इस कथन से होती है कि- "सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पण्डे-पुरोहित का कर्मकाण्ड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था। इसीलिए उनके ये अनुभव एक जबर्दस्त सचाई लिए हुए उनके कथा-साहित्य में झलक उठे थे।"[1] उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। 13 वर्ष की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया[2]। उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ। 1906 में उनका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। वे सुशिक्षित महिला थीं जिन्होंने कुछ कहानियाँ और प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन सन्ताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उनकी शिक्षा के सन्दर्भ में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "1910 में अंग्रेज़ीदर्शनफ़ारसी और इतिहास लेकर इण्टर किया और 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।"[3] १९१९ में बी.ए.[4] पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सिनेटोन कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए। उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।[5]

साहित्यिक जीवन

भित्तिलेख

प्रेमचंद (प्रेमचन्द) के साहित्यिक जीवन का आरंभ (आरम्भ) 1901 से हो चुका था[6] आरंभ (आरम्भ) में वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि-"प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है।"[7] उनका पहला उपलब्‍ध लेखन उर्दू उपन्यास 'असरारे मआबिद'[8] है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्‍यास 'हमखुर्मा व हमसवाब' है जिसका हिंदी रूपांतरण 'प्रेमा' नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। १९०८ ई. में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्‍य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायन निगम ने रखा था।[9] 'प्रेमचंद' नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।[10]

१९१५ ई. में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसम्बर अंक में पहली बार उनकी कहानी सौत नाम से प्रकाशित हुई।[11] १९१८ ई. में उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ। इसकी अत्यधिक लोकप्रियता ने प्रेमचंद को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया। हालाँकि उनकी लगभग सभी रचनाएँ हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती रहीं। उन्होंने लगभग ३०० कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखे।

१९२१ में असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सृजन में लग गए। उन्होंने कुछ महीने मर्यादा नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके बाद उन्होंने लगभग छह वर्षों तक हिंदी पत्रिका माधुरी का संपादन किया। १९२२ में उन्होंने बेदखली की समस्या पर आधारित प्रेमाश्रम उपन्यास प्रकाशित किया। १९२५ ई. में उन्होंने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा, जिसके लिए उन्हें मंगलप्रसाद पारितोषिक भी मिला। १९२६-२७ ई. के दौरान उन्होंने महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका चाँद के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद उन्होंने कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान की रचना की। उन्होंने १९३० में बनारस से अपना मासिक पत्रिका हंस का प्रकाशन शुरू किया। १९३२ ई. में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने लखनऊ में १९३६ में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कथा-लेखक की नौकरी भी की। १९३४ में प्रदर्शित फिल्म मजदूर की कहानी उन्होंने ही लिखी थी। १९२०-३६ तक प्रेमचंद लगभग दस या अधिक कहानी प्रतिवर्ष लिखते रहे। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ "मानसरोवर" नाम से ८ खंडों में प्रकाशित हुईं। उपन्यास और कहानी के अतिरिक्त वैचारिक निबंध, संपादकीय, पत्र के रूप में भी उनका विपुल लेखन उपलब्ध है।


Reference:- 

https://hi.wikipedia.org/wiki/प्रेमचंद

PREMCHAND BIOGRAPHY

On 31 July we celebrate birth anniversary of Premchand  Click Here to read  PREMCHAND BIOGRAPHY

Friday, July 26, 2024

कारगिल विजय दिवस 26/07/2024


 कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु यह दिवस मनाया जाता है |

Kargil Vijay Diwas 2024: 11 Heroes of Kargil We Shall Never Forget

1. Captain Vikram Batra ( Param Vir Chakra, Posthumous) (13 JAK Rifles)

2. Grenadier Yogendra Singh Yadav (Param Vir Chakra) (18 Grenadiers)

3. Captain Manoj Kumar Pandey (Param Vir Chakra, Posthumous) (1/11 Gorkha Rifles)

4. Lieutenant Balwan Singh (Maha Vir Chakra) (18 Grenadiers)

5. Major Rajesh Singh Adhikari (Maha Vir Chakra, Posthumous) (18 Grenadiers)

6. Rifleman Sanjay Kumar (Param Vir Chakra) (13 JAK Rif)

7. Major Vivek Gupta (Maha Vir Chakra, Posthumous) (2 Rajputana Rifles) 

8. Captain N Kenguruse (Maha Vir Chakra, Posthumous) (ASC, 2 RAJ RIF)

9. Lt. Keishing Clifford Nongrum (Maha Vir Chakra, Posthumous) (12 JAK LI)

10. Naik Digendra Kumar (Maha Vir Chakra) (2 RAJ RIF)

11. Captain Amol Kalia (Vir Chakra) (12 JAK LI)





Kargil Vijay Diwas

 


Wednesday, July 24, 2024

Kargil Vijay Diwas Quiz

Kargil Vijay Diwas 

Kargil Vijay Diwas : It is celebrated on 26 July to commemorate the victory of the Indian soldiers over the infiltrating Pakistani troops.
The Kargil War fought between May-July of 1999 in the Kargil district of Jammu and Kashmir along the Line of Control (LoC) in which India got the victory. Kargil War is also known as the Kargil conflict. Therefore, the day is dedicated to the martyred soldiers of the Kargil war. 

Tuesday, July 23, 2024

Library at Glance

LIBRARY : AT A GLANCE

 

PM SHRI  KENDRIYA VIDYALAYA O. F. RAIPUR, DEHRADUN,

Monitoring Report as KVS norms

1.      TOTAL NO. OF BOOKS (As Accession Register )  : 8889(As on 25.07.2024)

2.      Total No. Of User : 1247

3.      Total no. Of Books In Hindi :  3942

4.      Total No. of Books In English : 3795

5.      Total no. of Reference Book: 1152

6.      No. of News Paper :07

7.      No. Of Periodicals : 34

8.      Suggestion Box : Yes

9.      Computer With Internet : Yes

10.    Projector : YES

11.  Notice Board : Yes

12.  Library is fully automated with the help of E- Granthalaya

13.  Display Board : Yes

14.  Condemnation : Yes

15.  Wedding  out Process : Yes

16.  Issue- Return Process : By the help of Software (E-Granthalaya)

17.  Formation of Library Committee: Yes

18. Primary Class Library : Yes

19.  Suggestion from Teachers : Yes ,Time to Time

20.  Library Exhibition/ Book Fair Organized:  Yes , 08/07/2024 TO 10/07/2024

21.  Conducting of Activities Done : Yes

22.  Guidance and  Carrier Counseling : Yes

23.  Purchase of session 2024-25:  Total Books of Rs. 26000 (217) Hindi = Rs 15123, English=Rs. 13405/- Purchased till date in this financial year (2024-25). 

24.  Library Blog  :- librarykvofdehradun.blogspot.com

25. Digital Library:- YES 

CBSE STORY TELLING COMPETITION 2024

CBSE STORY TELLING COMPETITION 2024

STUDENTS CAN PARTICIPATE FROM CLASSES 3 TO 12

FOR MORE INFORMATION CLICK ON THE BELOW LINK 

Story Telling Competition


Sunday, July 7, 2024

Book Fair

 


All the class teachers are requested to inform their class students and their parents that  M/s Vidya Books  organising BOOK FAIR CUM EXHIBITION in our school Library from 08th July to 10th July 2024. Students and parents can visit the exhibition and also they can purchase the books from the BOOK FAIR.

मेजर ध्यानचंद

cyber and security awarness